|
दीवारों के निर्माण के लिए सदियों से पत्थनर का प्रयोग होता रहा है। मसाला बिछाकर पत्थर का प्रयोग करके निर्मित की गई दीवार को पत्थएर की चिनाई की दीवार कहा जाता है। पत्थर की चिनाई की दीवार को दो भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है — रोड़ी की चिनाई एवं संगीन चिनाई।
|
रोड़ी की चिनाई को पुन: चार श्रेणियों में बांटा गया है (क) रोड़ी की रद्दा रहित चिनाई: यह पत्थभर की चिनाई का सबसे खराब रूप है। चिनाई के लिए प्रयुक्तग किए जाने वाले पत्थ:र को सीधे खदान से प्राप्तक किया जाता है और मसाले के साथ बिछा दिया जाता है। सामान्यततया, यह दीवार मोटी होती है और दो पत्तियों अर्थात बाह्य पत्तीथ एवं भीतरी पत्तीत में बनाई जाती है। (ख) यादृच्छिक रोड़ी की चिनाई: यहां पत्थिरों को हथौड़ों या छेनी से तराशा जाता है। (ग) रोड़ी की रद्दादार चिनाई: आवासीय भवन, सार्वजनिक भवन, पाया एवं अपार्टमेंट के निर्माण में सामान्य तया इसी तरीके को अपनाया जाता है। पत्थवर को तराशा जाता है तथा कमोवेश समान ऊंचाई के रद्दे में बिछाया जाता है। (घ) रोड़ी की सूखी चिनाई: यह मसाले के बिना रोड़ी की साधारण चिनाई है।
|
संगीन चिनाई पत्थयर की ऐसी चिनाई है जो ध्यािन से तराशे गए पत्थतरों से की जाती है।
|
भारत के अधिकांश भागों में पत्थनर की चिनाई काफी लोकप्रिय है जहां पत्थजर स्थापनीय रूप से उपलब्धि हैं। यह सस्तां विकल्पथ साबित होता है तथा स्थाहनीय कुशल श्रमिक इसका निर्माण कर सकते हैं। तथापि, कुछ सावधानियां ऐसी हैं जिसे आम आदमी को अवश्यस बरतना चाहिए, अर्थात (1) हमेशा दीवार का निर्माण नियमित अंतराल पर पक्के पत्थयरों से करें ताकि बाहरी एवं भीतरी पत्तीस बंध जाए। (2) चूकि दीवारें भारी होती हैं, इसलिए भूकंप संभावित क्षेत्रों में ऐसी दीवारों के निर्माण से बचना चाहिए या इनका प्रबलन किया जाना चाहिए। (3) उर्ध्वा धर जोड़ों को यथा संभव ढेड़े मेड़े ढंग से रखना चाहिए। (4) उर्ध्वााधर सतहों को वस्तु त: उर्ध्वायधर रूप में निर्मित करना चाहिए तथा साहुल से चेक करना चाहिए। (5) चिनाई में प्रयोग करने से पूर्व मेख एंव ऐंठन के लिए पत्थरर में आवश्याक खांचे का निर्माण करना चाहिए (6) पत्थंर की चिनाई की ठीक से तराई की जानी चाहिए।
|
|
|