प्राक्कथन
भवन निर्माण सामग्रियों की लगातार कमी, अनुपलब्धता, लगातार बड़ी कीमतें और आवास एवं निर्माण की गिरती गुणवत्ता केंद्र एवं राज्य सरकारों की चिंता के कारण हैं। अब व्यापक तौर पर यह माना गया है कि आवास बनाने की लागत को घटाया जा सकता है और उभरती नवोन्मेषी भवन निर्माण सामग्रियों एवं प्रौद्योगिकियों के उपयोग के माध्यम से निर्माण की गति और गुणवत्ता को बढ़ाया जा सकता है। अनुसंधान के माध्यम से विकसित कई नवोन्मेषी लागत-प्रभावी भवन निर्माण सामग्री, घटकों, निर्माण तकनीकों के बावजूद आवास एवं भवन निर्माण एजेंसियां अपनी निर्माण कार्यों में इन्हें नहीं अपनाया है। जिस हद तक मानकों और विनिर्देशों की कमी ने स्वदेशी नवोन्मेषी भवन निर्माण सामग्री एवं प्रौद्योगिकी को अपनाने से रोकने में मददगार रही है यह काफी चिंता का विषय है। भारतीय मानकों और कोड में इन नई तकनीकों के सूचीबद्ध नहीं होने को निर्माण एजेंसियों द्वारा उनके कार्यों में इन्हें स्वीकार नहीं करने के सबसे प्रमुख कारणों के रूप में उल्लिखित किया गया है, भारतीय मानक ब्यूरो नई प्रौद्योगिकियों को मानकीकरण के दायरे में लेने के लिए लगातार प्रयास कर रहा है। हालांकि कई नई सामग्रियों और तकनीकों ने निर्माण उद्योग और कुछ आवास ऐजेंसी का ध्यान खींचा है और धीरे-धीरे कार्य संहिताओं में चिह्नित भी किया गया है, ये सीपीडब्ल्यूडी, एमईएस, राज्य पीडब्ल्यूडी जैसे संगठनों और सार्वजनिक और निजी सेक्टर के अन्य संगठनों के कार्य व्यवहारों में प्रसारित नहीं हुए हैं।
विभिन्न वास्तुकारों, इंजीनियरिंग विभागों और भवन निर्माण संगठनों के साथ बीएमटीपीसी के हाल के बातचीत से एक आम बात निकली है कि मानक विनिर्देशों की नहीं के कारण कई नई तकनीकें अपने निर्माण कार्य व्यवहारों में सही स्थान नहीं प्राप्त कर पाई हैं जोकि विनिर्देशों एवं संविदा दस्तावेजों के विभागीय अनुसूचियों में उनके प्रवेश को रोकने का एक कारक है। पूर्व निर्माण (प्रीफेब्रीकेशन) प्रणालियों के उपयोग के संबंध में शायद कई संगठनों के द्वारा बड़े स्तर अपनाए गए पूर्व निर्माण (प्रीफेब्रीकेशन) प्रणालियों के साथ पूर्व में हुए कुछ खराब अनुभव के कारण कई बार उदासीन रवैया देखा गया है। हालांकि, उचित उत्पादन स्तर आधारित ओपन प्रीफेब प्रणालियों और युक्तिसंगत उत्पादन विधियों के साथ छोटे तत्वों ने सामग्रियों और श्रम की लागत में तेजी से होती बढ़ोतरी को रोकने के लिए एक महत्वपूर्ण विकल्प के तौर पर आवास विशेषज्ञों का ध्यान खींचा है। हडको ने उनके द्वारा वित्त पोषित आवासीय योजनाओं में कई बार इनमें से कई प्रीफेब का बढ़ावा दिया है और विभिन्न क्षेत्रों में भवन निर्माण केंद्रों ने भी कई प्रौद्योगिकियां का प्रचार किया है।
बीएमटीपीसी की कार्यकारी समिति के उस समय के अध्यक्ष द्वारा गठित सलाहकार समूह ने कुछ समय पूर्व अनुसंधान एवं विकास के माध्यम से देश में विकसित इनमें से कई नई सामग्रियों और प्रौद्योगिकियों की जांच की और आवास एवं भवन निर्माण में संभावित उपयोगिता हेतु क्षमताओं को सीमित करने को इनका मूल्यांकन किया। बीआईएस, हडको समर्थित योजनाओं और सीबीआरआई और एसईआरसी के विस्तार केंद्रों से उपलब्ध प्रतिक्रिया के आधार पर समूह ने बीस ऐसी सामग्री, घटक और तकनीकों को चिह्नित किया जिनकी जमीनी हालातों और देश के विभिन्न हिस्सों में आवासीय एजेंसियों द्वारा काफी मात्रा में पर पर्याप्त परीक्षण कर लिया गया है और देश के विभिन्न हिस्सों में आवासीय एजेंसियों द्वारा काफी संख्या में भवनों में लगाया गया है। इनमें से कुछ को बीआईसी द्वारा कोड भी प्रदान कर दिया गया है।
चिह्नित प्रौद्योगिकियों पर विनिर्देशों का निरुपण करते समय, उपरोक्त उल्लिखित विभिन्न स्रोतों से तकनीकी जानकारी इक्ट्ठा करने और इन्हें मौजूदा प्रासंगिक भारतीय और/या अंतर्राष्ट्रीय मानकों के साथ तुलना करने हेतु प्रयास किया गया। विस्तृत विनिर्देशों को ऐसे निरुपित किया गया है कि इन्हें सार्वजनिक और निजी निर्माण एजेंसियों के द्वारा विनिर्देश की अनुसूची में शामिल किया जा सके। यह आशा है कि यह संकलन निर्माण एजेंसियों को उनके आवास एवं भवन निर्माण परियोजनाओं में नई प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा देने और अपनाने में मदद करेगा।
मानकों एवं विनिर्देशों के इस निरुपण को संवर्धनात्मक प्रयासों के द्वारा सराहने की जरूरत है। इसलिए, सभी निर्माण विभागों द्वारा उनके भवन निर्माण संहिताओं, अनुसूचियों और निविदा तथा संविदा दस्तावेजों में इन विनिर्देशों को समावेशित करने की अत्यंत आवश्यकता है। नए विकासों एवं उन्नतियों के समावेश को सुगम बनाने के लिए मानक एवं विनिर्देश स्थिर नहीं बल्कि गतिशील साधन हैं। यह महत्वपूर्ण है कि निर्माण एजेंसियों और यहां सिफारिश किए गए सामग्रियों और घटकों के असल क्षेत्रीय अनुभवों को ध्यान में रखते हुए आवधिक तौर पर इनकी समीक्षा की जाए।
विभिन्न क्षेत्रीय हालातों में इनको अपनाने की शीघ्रता को ध्यान में रखते हुए, प्रस्तावित विनिर्देशों को उचित तौर पर जोड़ा जा सकता है, कुछ मामलों में सामान्य मैनुअल तैयार कर, वास्तुकारों, सुपरवाइजरों एवं वे सब जो निर्माण परियोजनाओं के विभिन्न पहलुओं से जुड़े हैं उनके लिए उपयुक्त प्रशिक्षण कार्यक्रम द्वारा। बीएमटीपीसी, बीआईएस, हडको और संबंधित अनुसंधान एवं विकास संगठनों को ऐसे प्रयासों में सहायता प्रदान करने में प्रसन्नता होगी।
परिषद् ने 1996 में पहला संस्करण जारी किया था। सीबीआरआई, बीआईएस, सीपीडब्ल्यूडी, हडको से विनिर्देशों के निरुपण में प्राप्त सहायता के लिए हार्दिक धन्यवाद। मैं बीएमटीपीसी के अधिकारियों को विभिन्न विनिर्देशों के निरुपण में उनके बहुमूल्य योगदान के लिए विशेष धन्यवाद देना चाहूंगा।
(डॉ. शैलेश कुमार अग्रवाल)
कार्यकारी निदेशक
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