|
मशहूर आर्किटेक्टा लौरी बेकर ने चूहेदानी चाल की खोज की तथा इसे लोकप्रिय बनाया। इस पद्धति में प्रत्येखक फेयर ब्रिक के पीछे विवर के साथ छोर पर ईंट का प्रयोग किया जाता है। ईंट की चिनाई का प्रत्ये्क रद्दा 115 एमएम ऊंचा होता है जिसमें दो समानांतर फेसर होते हैं जिसके बाद 900 पर ईंट बिछाई जामी है ताकि चाल बंद हो जाए। अगले रद्दे में, लॉकिंग ब्रिक से इसके केंद्र में विवर को बढ़ाकर मसाले के उर्ध्वाजधर जोड़ों को तोड़ा जाता है। छोर पर ईंट से विवर को भरकर टी एण्ड एल फंक्शन को ठोस बनाया जाता है। छोर पर ईंट के क्षैतिज रद्दे सीलन रोधी रद्दा (डीपीसी) के नीचे, या लिंटेल एवं छत के लेवल पर लिया जा सकता है ताकि ये क्षैतिज रूप में आबद्ध हों। ईंट की चिनाई की 230 एमएम की प्रत्येलक ऊंचाई के लिए, मसाले के एक परत की बचत होती है।
|
कहने की जरूरत नहीं है कि इस चाल में बिछाई गई हर तीन ईंट से एक ईंट की बचत होती है। ईंट की परंपरागत दीवार की तुलना में नमन के विरूद्ध यह चाल अधिक मजबूती का प्रदर्शन करती है। ऐसा इस वजह से है कि इस चाल में पक्कीम ईंट छोर पर बिछाई जाती है जिससे एक्शरन 75 एमएम की गहराई की बजाय 115 एमएम की गहराई के विरूद्ध होता है। इस प्रकार, दीवार में विवर को देखते हुए इसकी समग्र मजबूती परंपरागत चाल कार्य से तुलनीय है। बाह्य प्रतिदान की पद्धति के लिए अपनाई गई सामान्यं प्रथा दीवार के आंतरिक फलक को चिकना रखना है जिस पर 12 एमएम का प्ला स्टरर चढ़ सकता है। बाह्य हेडर फलक पर प्लातस्टोर किया जाता है ताकि सतह स्ट्रेदचर फेस के अनुरूप परिमार्जित हो, जिसे खुला छोड़ दिया जाता है। इस प्रकार भीतरी सतह का सीलन से बचाव किया जाता है।
|
(चूहेदानी की चाल में ईंट की चिनाई किफायती विकल्प है तथा सरकार एवं सार्वजनिक एजेंसियों द्वारा अनेक किफायती आवास परियोजनाओं में इसका प्रयोग किया जा रहा है)
|
|
|
|