भारतीय उपमहाद्वीप प्राकृतिक खतरों के प्रति संवेदनशील है जैसा कि बीएमटीपीसी द्वारा प्रकाशित भारत की अतिसंवेदनशीलता एटलस द्वारा दर्शाया गया है और यह आपदा प्रबंधन अधिनियम के माध्यम से अधिनियमित किया गया है कि भारत को भूकंप, सूनामी आदि के संबंध में प्रतिक्रियाशील होने के बजाय सक्रिय होने की आवश्यकता है। भारतीय उपमहाद्वीप में पिछले दो से तीन दशकों में बार-बार आए भूकंप से यह भी पता चलता है कि सक्रिय दृष्टिकोण रखने के लिए यह जरूरी है कि हम जानकारियों, खतरों के परिदृश्य, मानचित्र, अतिसंवेदनशील और जोखिम विश्लेषण, रेट्रोफिटिंग रणनीति और अधिक और सबसे महत्वपूर्ण अपनी क्षमता निर्माण कर आपदाओं के लिए खुद को बेहतर तैयार करें।
आवासन और शहरी कार्य मंत्रालय ने भारत की अतिसंवेदनशीलता एटलस पर बीएमटीपीसी और स्कूल आफ प्लानिंग एंड आर्किटेक्चर (एसपीए), नई दिल्ली के सहयोग से एक ई-कोर्स शुरू किया है यह पाठ्यक्रम भूकंप, चक्रवात, भूस्खलन, बाढ़ आदि जैसे प्राकृतिक खतरों के बारे में जागरूकता और तकनीकी समझ प्रदान करता है और अतिसंवेदनशील क्षेत्रों की पहचान करने में मदद करता है साथ ही मौजूदा आवासीय स्टॉक को नुकसान के जोखिम को जिलेवार स्तर पर निर्दिष्ट करता है।
भूकंपीय रेट्रोफिटिंग तकनीकों का प्रदर्शन करने के लिए, बीएमटीपीसी जीवन के महत्वपूर्ण भवनों का भूकंपीय सुदृढ़ीकरण का कार्य कर रहा है। उनमें से कुछ हैं जम्मू और कश्मीर में कुपवाड़ा उप-मंडल अस्पताल, थानो देहरादून में प्राथमिक विद्यालय और दिल्ली में 7 एमसीडी स्कूल। इससे पहले, परिषद ने भुज में जनवरी 2001 के भूकंप के ठीक बाद 5500 राजमिस्त्री और 50 फील्ड इंजीनियरों को प्रशिक्षण प्रदान करने के अलावा, गुजरात के भूकंप प्रभावित क्षेत्र में 478 मॉडल घरों के निर्माण और 445 सार्वजनिक भवनों जैसे स्कूलों, स्वास्थ्य केंद्रों और सामुदायिक केंद्रों की रेट्रोफिटिंग के माध्यम से आपदा प्रतिरोधी प्रौद्योगिकियों का प्रदर्शन किया है। ।
संवेदनशीलता मूल्यांकन के क्षेत्र में बीएमटीपीसी के प्रयासों को स्वीकार करते हुए, एनडीएमए ने बीएमटीपीसी को तालुका सीमाओं को चित्रित करते हुए जिला स्तर तक भारत की अतिसंवेदनशीलता एटलस का विस्तार करने के लिए एक परियोजना प्रदान की थी । इस परियोजना के तहत , परिषद ने भारत, राज्य / केंद्र शासित प्रदेश और जिले (626 जिलों) के लिए अद्यतन भूकंपीय खतरे के नक्शे और एटलस तैयार किए।
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